maharathi
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प्रेम की भाषा, सब रचि राखा, शब्द नहीं पर कोई
अधरन की लाली, अरु लट काली, निरखि कपोलनु जोई।
माथे की बैंदी, हाथ की मेंहदी, गरम सांस तन सोई
नयननु की बानी, अकथ कहानी, पढै सो प्रेमी होई।।1।।
यह मंद मधुर सुर, चहकत नूपुर, करि रहे मन की चोरी
चूडि़न की खन खन, झांझर झन झन, सब खामोशी तोरी।
कछु तिरछी चितवन, लखि मन ही मन, कंपित ¬प्रेम की डोरी
वह पलक झुकाए, नयन उठाए, ज्योति ज्योति सौं जोरी।।2।।
जब सम्मुख पाई, कछु शरमाई, झुकी हरित ज्यौं शाखा
कर गहे कपोलन, शशि मुख दोलन, नयननु चल हि पटाखा।
तव अधर अधर धर, पुनि च अधर कर, अंक अंक धर राखा
कुछ मधुर रसीला, बहुत नशीला, प्रथम प्रेम फल चाखा।।3।।
वृन्दावन, मथुरा (उ.प्र.)
+919319261067
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