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मोहन-गोपी प्रेम (सवैया)

maharathi
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जब मोहन मन में नहिं होता मन में कुछ नहिं होता है
मोहन मन में होता है कुछ और न मन में होता है।
मन में डोर लगी ऐसी मन मोहन मन में होता है
मन मोहन मन में हो तो मन सौ सौ मन का होता है।।1।।

जब देखौ छलिया घूरत मेरी मूरत सी सूरत बन गई
नटखट झटपट तें आय गयौ सरकत में झरपट मार दई।
पतरी पतरी गोरी गोरी नरम कलइयां झटकि दई
अइयां बइयां बैठी थी वा ने आइ के बइयां पकडि़ लई।।2।।

बिना तीर बरछी कटार करते शिकार सुन लो प्यारे
कछु तार दये कछु मार दये हैं जादूगर कारे कारे।
फरकत हरकत में बरसत यूं बरसत जैसे परनारे
घूंघट में तें घूर रहे दो कछु चंचल कछु मतवारे।।3।।

रंग बिरंगी चूनर ये जैसे बसंत की बारी है
रास बिहारी बनवारी गिरधारी कृष्ण मुरारी है।
खीजि गयी मैं जब मेरी चूनर खेंचि कदम्ब पै डारी है
बरसा ऋतु के मेघ घिरे नैनन तें बरखा जारी है।।4।।

डा. अवधेश किशोर शर्मा ‘महारथी

वृन्दावन, मथुरा (उ.प्र.)

+919319261067

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