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सिला (गीत)

maharathi
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गुस्ताखी का मिला सिला हमको जवाब में

आई कली गुलाब की रखकर किताब में।। मुखड़ा।।

ऐसा नशा है खुशबू में पागल जो कर गया

मदहोशी सी छा रही दिल में उतर गया

अब तक न ये मिला कभी हमको शराब में।।1।।

दिल में गुबार उठ रहा आँधी सी मचली

जी चाहता है चूमलूँ वो अधखिली कली

है कैद पँखुड़ी मगर जालिम नकाब में।।2।।

तू ऐ तमाशबीन क्यों गुमराह कर रहा

तेरी डगर पे चल रहा घुट घुट के मर रहा।

नेकी नहीं झलक रही तेरे स्वभाव में।।3।।

दिन में भी ख्वाब देखता नादां महारथी

ये कौन दे रहा सदा तुझको ‘महारथी’

आँखें खुली तो पड़ गई हड्डी कवाब में।।4।।

डा. अवधेश किशोर शर्मा ‘महारथी

वृन्दावन, मथुरा (उ.प्र.)

+919319261067

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