maharathi
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‘महारथी’ कविपन दिखलाए है मन में उल्लास
एक नई फिर कविता होगी होना नहीं उदास।। मुखड़ा।।
रचना की थी जिस कविता की किया लेखनी कैद
मसि कागद पर चलि रही एक नयी फिर पैद।
शब्द जुड़ेंगे नये अनोखे फिर कुछ होगा खास।।1।।
कविता बिन कवि कवि बिन कविता कैसा कबिपन है
कविता धन है कविता मन है तन है जीवन है
तज देंगे जब इस जीवन को कुछ ना होगा पास।।2।।
कविता भाव है मनोभाव है भाव का जहाँ अभाव
आखर आखर बोध नव भाव प्रभाव स्वभाव
कवि कविता वो धन्य जब सृष्टि और विकास।।3।।
चक्र यही नव सृजन हमेशा बढो लक्ष्य की ओर
तम के बाद में ज्योति है निशा गये फिर भोर।
पढ लोगे जब इस कविता को एक नई फिर आस।।4।।
डा. अवधेश किशोर शर्मा ‘महारथी’
वृन्दावन, मथुरा (उ.प्र.)
+919319261067
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