maharathi
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जनम दयौ है पालौ क्षीर हू पिलायौ नित ,
दुख सह सुख दयौ जननी कौ ऋण ये ।
पालौ पाषौ नाम दयौ काबिल बनायौ आजु ,
भूखे रह भूख मेटी जनक कौ ऋण ये ।
रंग दयौ धानी धानी रूखौ सूखौ पट देखि ,
मांजि कें चमक दई गुरु कौ है ऋण ये ।
पटै ऋण धन धान्य और अहसान हू कौ ,
‘महारथी’ परि कैसे पटि पावै ऋण ये।।1।।
पोषौ तोय याके लिए तू भी पोषे और काऊ ,
माँ की ममता कूँ तू जो दाग ना लगायगौ ।
किलकारी सुनि जैसे जनक अगारी आए ,
जैसे तू बढायौ सुत तू भी जो बढायगौ।
रंग दे समाज जीय जन कल्याण हेतु ,
राह दई गुरु जो वाई पै चलि जायगौ ।
‘महारथी’ करतब बोध कूँ जगाले आजु ,
अपने ही आप ऋण सारौ चुक जायगौ।।2।।
डा. अवधेश किशोर शर्मा ‘महारथी’
वृन्दावन, मथुरा (उ.प्र.)
+919319261067
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