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गौ माता

maharathi
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गौ माता
तृण भक्षणी तन रक्षणी, धन लक्ष्मी गौ मात हे।
तुम हो पालक रोग घालक, मैं हूं बालक तात हे।।
गो रस सुधा मिटती क्षुधा, हो पल्लवित जग गात हे।।
गरिमामयी करुणामयी, ममतामयी सुविख्यात हेे।।छन्द।।
हूँ मात मेरे तात सो, मैं श्राप भी ना दे सकूँ।
पीड़ा भरा जीवन मेरा, मैं श्वांस भी ना ले सकूँ।।
पतवार बिन जीवन भँवर, में नाव को ना खे सकूँ।
इतनी बुरी मेरी दशा, क्या हो गया है देष कूँ।।छन्द।।
ना घास है न निवास है, बस इक निवाला ढूंढती।
इस उस डगर किस किस डगर, नाले नदी में घूमती।।
लालच में आकर लालची, कर ता यह मेरी दुर्गती।
ना पाल सकते हो मुझे, फिर तुम मुझे पालो मती।।छन्द।।
बेटा कटा मैं भी कटूं, ले जा रहा वह लाद कर।
क्या क्या दिया मैंने तुझे, मानुष तनिक तो याद कर।।
आरा न रख गरदन मेरी, पद चार मेरे बांध कर।
धरमी =======================================विधरमी मांस खाते, रांध कर बिन रांध कर।।छन्द।।
गौमाता
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तृण भक्षणी तन रक्षणी, धन लक्ष्मी गौ मात हे।
तुम हो पालक रोग घालक, मैं हूं बालक तात हे।।
गो रस सुधा मिटती क्षुधा, हो पल्लवित जग गात हे।।
गरिमामयी करुणामयी, ममतामयी सुविख्यात हेे।।छन्द।।
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हूँ मात मेरे तात सो, मैं श्राप भी ना दे सकूँ।
पीड़ा भरा जीवन मेरा, मैं श्वांस भी ना ले सकूँ।।
पतवार बिन जीवन भँवर, में नाव को ना खे सकूँ।
इतनी बुरी मेरी दशा, क्या हो गया है देश कूँ।।छन्द।।
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ना घास है न निवास है, बस इक निवाला ढूंढती।
इस उस डगर किस किस डगर, नाले नदी में घूमती।।
लालच में आकर लालची, कर ता यह मेरी दुर्गती।
ना पाल सकते हो मुझे, फिर तुम मुझे पालो मती।।छन्द।।
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बेटा कटा मैं भी कटूं, ले जा रहा वह लाद कर।
क्या क्या दिया मैंने तुझे, मानुष तनिक तो याद कर।।
आरा न रख गरदन मेरी, पद चार मेरे बांध कर।
धरमी विधरमी मांस खाते, रांध कर बिन रांध कर।।छन्द।।
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डा. अवधेश किशोर शर्मा ‘महारथी’
वृन्दावन, मथुरा, उ.प्र.
9319261067
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