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क्या यही है अभिव्यक्ति की आजादी?

maharathi
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क्या यही है अभिव्यक्ति की आजादी?

क्या यही है अभिव्यक्ति की आजादी? माननीय उच्चतम न्यायालय, महामहिम राष्ट्रपति आदि समस्त भारतीय न्यायिक संस्थाओं ने सभी तथ्यों को जाँच परख कर मेनन को फांसी दी। हमारे देश के तथाकथित मीडिया चैनल आज भी मेनन की फांसी पर ट्रायल चला रहे हैं। टी आर पी के दीवाने ये चैनल सरासर देशद्रोह कर रहे हैं। माननीय उच्चतम न्यायालय, महामहिम राष्ट्रपति की अवमानना कर रहे हैं। जाति और धर्म के नाम पर सीधे सीधे देश को बांट रहे हैं और अपनी टी आर पी की रोटियां सेंक रहे हैं। सब धंधे की जुगाड़ कर रहे हैं।

क्या यही है अभिव्यक्ति की आजादी? अब तो इन तथाकथित मीडिया चैनलों इतनी गिरी हरकतें करना शुरू कर दिया है कि रोज शाम को चकल्लस लगाते हैं। सरकस दिखाते हैं। बे-सिर पैर की चर्चाऐं करते हैं। चर्चाओं के शीर्षक देश प्रेरित नहीं टी आर पी प्रेरित होते हैं। देश का बंटाधार होता है तो होता रहे इन्हें इससे कोई सरोकार नहीं है।

क्या यही है अभिव्यक्ति की आजादी? यदि देश में ओले गिरते किसान मरते हैं तो चन्द मिनटों की खबर प्रसारित की जाती है और यदि सदी के नायक के बेटे की शादी होती है तो खबर लगातार तीन दिन तक चलती है। इनकी पेश जाय तो सुहागरात का भी लाइव प्रसारण कर दें। हार कर सदी के नायक को इनके हाथ जोड़ कर निजता का सम्मान करने के लिए कहना पड़ा था। मेरे प्रिय देश वासियों को सब याद होगा।

क्या यही है अभिव्यक्ति की आजादी? क्रिकेट मैच वाले दिन कोई खबर प्रमुखता नहीं पाती। क्या देश इन्हीं खबरों से चलेगा। राजस्थान में मथुरा की सांसद की गाड़ी से कुचल कर एक नन्हीं सी परी मर गयी यह खबर तथाकथित मीडिया चैनलों से गायब रही। तब तथकथित ये सभी मीडिया चैनल कहाँ सो गये थे। कहां तक कहें ……. ।

क्या यही है अभिव्यक्ति की आजादी? यदि हाँ तो हमें ऐसी अभिव्यक्ति की आजादी नहीं चाहिए। आवश्यक हो तो संविधान में संशोधन किया जाय और उसमें निर्धारित किया जाय कि माननीय उच्चतम न्यायालय, महामहिम राष्ट्रपति आदि समस्त भारतीय न्यायिक संस्थाओं के निर्णय पर प्रत्यक्ष या परोक्ष विचार विमर्श नहीं किया जाय। बे-सिर पैर की चर्चाओं पर अविलम्ब प्रतिबन्ध लगा दिया जाय।

क्या यही है अभिव्यक्ति की आजादी? ऐसे माननीय न्यायिक संस्थाओं की अवमानना करने वाले और देशद्रोही टी आर पी के दीवाने तथाकथित मीडिया चैनलों को देखना मैं पसन्द नहीं करता और अब तो आवाज भी उठने लगी है कि ऐसे चैनलों को देखने वालों का भी बहिष्कार हो। यदि अभिव्यक्ति की आजादी आपके पास है तो यह अधिकार हमारे पास भी हम अपने घर में न तो तथाकथित मीडिया चैनलों को देखते हैं और नहीं इनका नाम लेकर बातें करने वालों को अपने घर में आने देते हैं।

बापू ! क्या सोच कर हमें अभिव्यक्ति की आजादी दिलाई थी आपने? हम माननीय न्यायिक संस्थाओं के निर्णय से ऊपर जा कर इन संस्थाओं की हंसी उड़ाऐं ? देश के गद्दारों को फांसी देने के सक्षम माननीय न्यायिक संस्थाओं के निर्णय का प्रत्यक्ष या परोक्ष विरोध करें। बापू ! यदि आपका उत्तर हां है तो मैं आपसे यही कहूंगा कि हमें ऐसी अभिव्यक्ति की आजादी क्यों दिलाई थी ?

देश की जनता विचार करे। साधूवाद।

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