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डा. घसीटा राम: एक परिचय

maharathi
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बात लगभग पांच साल पुरानी है। मैं किसी काम से आगरा गया था, आगरा से वृन्दावन आने के लिए मथुरा की चार बजकर दस मिनट वाली ईएमयू शटल में सवार हो गया। रास्ते में मुझे भाई साहब मिल गये।

पहले आपसे इनका परिचय करा देता हूं। यह एक काल्पनिक पात्र है जिसका नाम है डा. घसीटा राम। जब मैं पीएच.डी. कर रहा था, ये मेरे एक साल सीनियर रहे। बहुत ही विनोदी किस्म के जीव हैं। बात बात में विनोद निकाल लेना इनकी चिर परिचित शैली रही है।

रामा कृष्णा के बाद उन्होंने मुझ से पूछा कहाँ से आ रहा है। मैं ने कहा ट्रेन आगरा से आ रही है तो आगरा से ही आ रहा हूं।

क्या काम था?

कोई खास नहीं ऐसे ही गया था।

अब ठीक है?

मतलब।

आगरा से लौट रहा है ना तो इलाज विलाज ठीक से करा लिया है ना।

पहली बात तो ये है कि मैं पूरी तरह से ठीक हूं। दूसरी बात यह कि मान लो कि बीमार हूं तो मथुरा और वृन्दावन में बहुत से डाक्टर हैं आगरा जाने की क्या आवश्यकता है। फिर भी ….. यदि कोई बड़ी बीमारी हो तो दिल्ली जाना चाहिए। पास में ही तो है।

वह तो ठीक कह रहा है? लेकिन कुछ बीमारियां ऐसी होती हैं जिनका इलाज वृन्दावन और मथुरा को छोड़ दिल्ली में भी नहीं है लेकिन आगरा में है।

मैं समझ गया कि वह पागलखाने की बात कर रहे हैं। आगरा दो ही चीजों के लिए प्रसिद्ध है एक तो ताजमहल और दूसरा पागलखाना। प्रमुझे बुरा लगा लेकिन क्या करता वह सीनियर थे। भाईसाहब थे।

क्या आपने मुझे पागल समझ रखा है?

नहीं नहीं तू आगरा से लौट रहा है ना और वह भी बिना कोई खास कारण के गया था तो सोचा कि कहीं ……?

नहीं नहीं भाई साहब मैं पागल नहीं हूं।

आज तक किसी पागल ने ये घोषित नहीं किया कि वह पागल है। शराबी कभी स्वीकार नहीं करता कि उसे नशा है और पागल कभी भी स्वीकार नहीं करता कि वह पागल है।

मैंने कहा कि भाई साहब आप कहना क्या चाहते हैं?

यही कि अगर कोई समस्या हो तो बता देना मैं आगरा ले चलूंगा।

मेरे धैर्य की सीमा जबाव दे रही थी लोग मेरी ओर देख रहे थे। भाई साहब मुझे पागल सिद्ध करने पर तुले पड़े थे।

भाई साहब देखो आगे कुछ मत बोलना मेरा धैर्य समाप्त हो जाएगा।

अबे उतर । गाड़ी बाद रेलवे स्टेशन पर खड़ी है। तेरे में तो बीमारी के लक्षण अभी भी मौजूद हैं। डाक्टर ने तुझे छोड़ कैसे दिया……?

भाई साहब मैं किसी डाक्टर के पास नहीं गया, यूनीवर्सिटी गया था, कालेज के काम से।

अरे तो पहले बता देता। इतनी बात क्यों होती? सोच बिना किसी खास कारण के कोई साठ सत्तर किलो मीटर क्यों जाएगा नौकरी से छुट्टी लेकर? पूरा दिन बरबाद करेगा। पैसा और मेहनत जाया होगी सो अलग।

खैर ये बता काम हो गया कि नहीं। घर पर सब ठीक तो है? वैसे मैं तेरे ही घर जा रहा था। बिहारी जी के दर्शन भी कर आऊंगा और बहुत दिनों से मुलाकात नहीं हुई है सो तुझ से बात भी हो जायेगी।

(घटना, पात्र एवं स्थान आदि सभी काल्पनिक हैं, यदि कोई समानता पायी जाती है तो वह मात्र एक संयोग है। कृति का उद्देश्य किसी की भावना को ठेस पहुंचाना नहीं है।)

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