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गीत
राधा तुम्हारी आकुल, होकर के लिखती पाती।
पढते ही लौट आना, अब जिन्दगी सताती।।मुखड़ा।।
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यशुदा के लाल छैया, कटती हैं तेरी गैया,
मथुरा में कंस था इक, कसों के जग में भैया।
आंखें खुली बताती, कितना वो तड़फड़ाती।
पढते ही लौट आना, अब जिन्दगी सताती।।1।।
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अब भ्रूण में ही मेरा, वध कंस कर रहे हैं,
नादान इस जगत का, विध्वंस कर रहे हैं।
मैं निरीह लड़ न पाती, जिन्दा न भू पर आती।
पढते ही लौट आना, अब जिन्दगी सताती।।2।।
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तुम रास भी रचाते, फिर भी न होती ग्लानी,
पावन था आचरण, सो बनती सुखद कहानी।
पर आज निर्भया की, जाती है लाज जाती।
पढते ही लौट आना, अब जिन्दगी सताती।।3।।
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धू धू जले हैं वधुऐं, फैला दहेज दानव,
बदला है देश तेरा, बदले हैं तेरे मानव।
ये जिन्दगी है पसरी, दुर्गन्ध नित उड़ाती।
पढते ही लौट आना, अब जिन्दगी सताती।।4।।
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अब नंद अरु यशोदा, अन्तिम पड़ाव पर हैं,
नव विश्व की ये पीढी, ना जाने क्या असर है।
औलाद दर्द देती, हर रोज फटती छाती।
पढते ही लौट आना, अब जिन्दगी सताती।।5।।
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दोषी तुम्हीं कन्हैया, परसों न लौट पाये,
मझिधार छोड़ भागे, महारथी हुए पराये।
बस एक कंस मारा, सौ और थे संगाती।
पढते ही लौट आना, अब जिन्दगी सताती।।6।।
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राधा तुम्हारी आकुल, होकर के लिखती पाती।
पढते ही लौट आना, अब जिन्दगी सताती।।
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