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।।मन की बात।।

maharathi
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कई लोगों ने मुझ से मेरा परिचय पूछा है। अतः मैं आप सभी को अपना विस्तृत परिचय देना चाहूंगा। मैंने कृषि स्नातक 1986 में आगरा विश्वविद्यालय, आगरा से, परास्नातक (कृषि) डेयरी पशुपालन 1994 में जी.बी. पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर से और पीएच.डी. पशुपालन 1997 में डा. बी.आर. अम्बेडकर विश्वविद्यालय, आगरा से उपाधि प्राप्त की। इस दौरान मैं जी.बी. पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर में एक वर्ष और छह माह तक शोध/टीचिंग असिस्टेंट के रूप में शिक्षण कार्य किया। राजा बलवन्त सिंह कालेज, बिचपुरी, आगरा में वर्ष 1993 से 1997 के दौरान चार वर्ष तक ओनेरेरी लैक्चरर के रूप में स्नातक तथा परास्नातक स्तर पर शिक्षण कार्य तथा वर्ष 1997 से 2002 तक इसी महाविद्यालय में रिसर्च एसोशिएट के रूप में कार्य करने के उपरान्त वर्तमान में सह-प्राध्यापक एवं अध्यक्ष, पशुपालन एवं दुग्ध विज्ञान विभाग, सर्वोदय महाविद्यालय, चैमुहाँ, मथुरा में वर्ष 2002 से कार्यरत हूं। वर्ष 1997 में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करने के उपरान्त मुझे सी.एस.आई.आर., नई दिल्ली से रिसर्च एसोशिएट-शिप प्राप्त हुई जिसका संचालन आर.बी.एस. कालेज, बिचपुरी आगरा में डा. प्रकाश चन्द्रा जी, तत्कालीन एसोशिएट प्रोफेसर, (आगे ‘‘सुपरवाइजर’’ के रूप में लिखा गया है) के सुपरविजन में किया गया। इस दौरान राष्ट्र हित की शोध परियोजना पर शोध कार्य किया तथा उसके परिणाम देश विदेश में ख्याति प्राप्त जरनल्स में प्रकाशित कराये गये। मैंने विषय पर चार रपटें भी लिखीं और सी.एस.आई.आर. नई दिल्ली में समय समय पर जमा करायी गयीं। शोध कार्य समय से लगातार सम्पन्न किया जाता रहा था परिणामस्वरूप समय समय पर परियोजना का विस्तार किया जाता रहा जो सितम्बर, 2002 तक प्रभावी था। इस दौरान सुपरवाइजर तथा आर.बी.एस. कालेज, बिचपुरी आगरा के तत्कालीन प्राचार्य डा. बी.के. अग्रवाल जी (आगे ‘‘प्राचार्य’’ के रूप में लिखा गया है) के मध्य आपसी सम्बन्धों में खटास उत्पन्न हो गयी। प्राचार्य महोदय ने परियोजना के उपभोग प्रमाण वर्ष 2000 से बिना किसी अन्य कारण के सी.एस.आई.आर., नई दिल्ली को अग्रसारित नहीं किये। जिसका परिणाम यह रहा कि वर्ष 2000 से मुझे वृत्ति और भत्ता नहीं मिला जब कि मैं परियोजना पर अनवरत रूप से कार्य कर रहा था। पूरे परिवार का भार मेरे ऊपर था। बार बार निवेदन के बाद भी प्राचार्य महोदय ने उपभोग प्रमाण सी.एस.आई.आर., नई दिल्ली को अग्रसारित नहीं किये। मैं सपरिवार भुखमरी के दौर से गुजर रहा था। लगभग डेढ़ वर्ष तक परिवार की भुखमरी को झेलने के बाद अन्ततः मजबूर होकर मैंने मामले को माननीय सी.ए.टी., इलाहाबाद में प्रस्तुत किया। जहाँ से मुझे आदेशित किया गया कि मैं उचित न्यायिक प्लेटफार्म पर मामले को रखूं। जैसे ही माननीय सी.ए.टी., इलाहाबाद के आदेश की प्रति प्राचार्य महोदय के सम्मुख आई, उन्होंने इस आरोप के साथ कि मैंने मामले को माननीय सी.ए.टी., इलाहाबाद में उठाया है जिससे संस्था के गौरव को हानि हुई है, मुझ से महाविद्यालय में कार्य करने की अनुमति अविधिक रूप एवं मनमाने ढंग से वापस ले ली और मुझे सड़क पर ला खड़ा कर दिया गया। बार बार अनुरोध के उपरान्त भी प्राचार्य महोदय ने मुझे आवश्यक अनुभव प्रमाण पत्र भी निर्गत नहीं किया। अब मैं सपरिवार भुखमरी के स्तर पर था। मैंने मथुरा में स्थित एक स्ववित्त पोषित महाविद्यालय (आगे ‘‘वर्तमान महाविद्यालय’’ के रूप में लिखा गया है) में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में कार्य करना प्रारम्भ किया। स्ववित्त पोषित महाविद्यालय में वेतन, सेवा शर्तें एवं अन्य सुविधाऐं मानकों के अनुसार कदापि नहीं थे। वर्तमान महाविद्यालय में वेतन बेहद अल्प (इतना अल्प कि बताने में भी शर्म आती है), कार्य मानकों से कहीं अधिक तथा सेवा शर्तें बेहद कठोर हैं। लेकिन परिवार का भरण पोषण मेरे लिए प्राथमिकता और मजबूरी थी। हालांकि यहाँ समय समय पर मुझे पदोन्नति तो मिली, लेकिन वेतन, सेवा शर्ते तथा अन्य सुविधाऐं आज भी बहुत ही दयनीय हैं। वर्तमान में इस महाविद्यालय में मेरा पद एसोशिएट प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, पशुपालन एवं दुग्धविज्ञान विभाग है। वर्तमान महाविद्यालय स्नातक स्तरीय है जहाँ मेरे लिए शोध कार्य कर पाना सम्भव नहीं है। मैंने अपनी क्रिया शीलता को बरबाद नहीं होने दिया और विषय पर चार पाठ्य पुस्तकें तथा चार अन्य पुस्तकें प्रकाशित करायीं। इस दौरान मैंने अपने वकील महोदय श्रीमान आर.सी. कटारा जी के माध्यम से माननीय सी.ए.टी., इलाहाबाद अक्टूबर, 2002 में मामला माननीय उच्च न्यायालय, इलाहाबाद के सम्मुख रखा। प्राचार्य महोदय ने श्री कटारा जी के पुत्र का प्रवेश आर.बी.एस. कालेज, बिचपुरी, आगरा में बी.टेक. कक्षा में करा कर उन्हें अनुग्रहीत कर दिया। अतः यह मामला माननीय उच्च न्यायालय, इलाहाबाद में लटका रहा। अन्ततः मैंने मामला दूसरे वकील श्रीमान पंकज मिश्रा जी को सौंपा और अनावश्यक रूप से पुनः मोटी फीस आदि पर बहुत खर्चा करना पड़ा। प्राचार्य महोदय ने पुनः इन वकील साहब को भी खरीदने का प्रयास किया। लेकिन वे इस बार सफल नहीं हो सके। मामला आज भी माननीय उच्च न्यायालय, इलाहाबाद में विचाराधीन है। मामले को माननीय उच्च न्यायालय, इलाहाबाद में लम्बित हुए आज लगभग तेरह वर्ष हो चुके हैं। समझा जा सकता है कि देश का एक वैज्ञानिक जिस पर देश ने काफी खर्च कर तैयार किया था। प्राचार्य जी की हठधर्मिता के चलते बरबाद कर दिया गया है। प्राचार्य जी का चरित्र ऐसा रहा कि वे अन्ततः आर्थिक हेरा फेरी तथा अन्य आरोपों के चलते अपने पद से निलम्बित हुए। इस दौरान मैंने अनेक संस्थानों में विभिन्न पदों के लिए आवेदन किया। कुछ का विवरण निम्न लिखित है- -सरदार बल्लभ भाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विष्वविद्यालय, मेरठ में असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर आवेदन किया। मैंने एक मोटी आवेदन फीस के साथ समय से विधिवत आवेदन किया। पर्याप्त शैक्षिक योग्यता, अनुभव एवं प्रकाशन कार्य तथा प्रभावशाली इण्टरव्यू के बाद भी मेरा चयन नहीं हो सका। कारण स्पष्ट था कि इस बार रिश्वत (आगे ‘‘आर्थिक योग्यता’’ के रूप में लिखा गया है) न देने के कारण मेरा चयन नहीं हो सका था। तत्कालीन कुलपति महोदय डा. पी.पी. सिंह जी बाद में रिश्वत के इसी फर्जीवाड़े में पदच्युत हुए थे। -जी.बी. पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर में असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर दो बार आवेदन किया। मैंने हर बार मोटी आवेदन फीस के साथ समय से विधिवत आवेदन किया। पर्याप्त शैक्षिक योग्यता, अनुभव एवं प्रकाशन कार्य तथा प्रभावशाली इण्टरव्यू के बाद भी मेरा चयन नहीं हो सका। कारण अस्पष्ट था। -मैंने सी.एस.आई.आर., नई दिल्ली में सीनियर रिसर्च एसोसिएट के लिए एक मोटी आवेदन फीस के साथ समय से विधिवत आवेदन किया। पर्याप्त शैक्षिक योग्यता, अनुभव एवं प्रकाशन कार्य तथा प्रभावशाली इण्टरव्यू के बाद भी एक बार फिर से मेरा चयन नहीं हो सका। सम्भावित कारण था कि सी.एस.आई.आर., नई दिल्ली के विरुद्ध मेरा पिछला मामला अभी तक माननीय उच्च न्यायालय, इलाहाबाद के सम्मुख विचाराधीन था। -उत्तर प्रदेष राजर्षि टण्डन मुक्त विश्वविद्यालय, इलाहाबाद में निदेशक, स्कूल आफ एग्रीकल्चर पद के लिए विज्ञापन प्रकाशित किया गया। मैंने एक मोटी आवेदन फीस के साथ समय से विधिवत आवेदन किया। पर्याप्त शैक्षिक योग्यता, अनुभव एवं प्रकाशन कार्य तथा प्रभावशाली इण्टरव्यू के बाद भी एक बार फिर से मेरा चयन नहीं हो सका। कारण इस बार भी आर्थिक योग्यता न होना रहा। इण्टरव्यू, ए.सी. तथा ई.सी. की बैठकें बदली गयीं। मामला राज्यपाल के संज्ञान में गया। जाँच आदि भी करायी गयी लेकिन मामले में मंत्री स्तर के लोग सम्मिलित थे अतः बाद में प्रकरण में लीपापोती की गयी और ठण्डे बस्ते में डाल दिया गया। -चन्द्र शेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कानपुर में विगत वर्ष प्रोग्राम कोआर्डीनेटर, कृषि विज्ञान केन्द्र पद हेतु विज्ञापन किया गया। पर्याप्त शैक्षिक योग्यता, अनुभव एवं प्रकाशन कार्य तथा प्रभावशाली इण्टरव्यू के बाद भी एक बार फिर से मेरा चयन नहीं हो सका। कारण फिर से वही आर्थिक योग्यता का न होना रहा। इसी प्रकरण में घोटाले के कारण तत्कालीन कुलपति महोदय डा. मुन्ना लाल जी को उनके पद से हटाया गया। -ताजा प्रकरण बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झांसी का है। यहाँ इसी वर्ष विश्वविद्यालय द्वारा संचालित स्ववित्तपोषित संस्थान में प्रोफेसर पद हेतु आवेदन आमंत्रित किये गये। मैंने एक मोटी आवेदन फीस के साथ समय से विधिवत आवेदन किया। लेकिन विडम्बना यह है कि चयन हेतु कोई इण्टरव्यू नहीं कराया गया। अपितु अन्य को इस पद हेतु चयनित किया गया। यह विधि सम्मत नहीं है लेकिन फिर भी यह हो गया। जिन उम्मीदवारों ने विधिवत आवेदन किया था उनमें से किसी का न तो इण्टरव्यू हुआ और न चयन किया गया। -मामले और भी बहुत हैं। आखिर कितना लिखूँ? इतना सब कुछ होने के बाद भी मुझे इनमें से किसी से भी कोई शिकायत नहीं है। मेरी चाह यही है कि मैं प्राथमिकता के साथ सम्माननीय भारत माता की सेवा कर सकूं और साथ ही अपने परिवार की कम से कम समस्त अति आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकूं। आज की तिथि में दोनों ही स्तर (राष्ट्र तथा परिवार) पर योग्य होने के बावजूद भी मैं स्वयं को अक्षम पा रहा हूँ। आज मेरे पास योग्यता एवं क्षमता के अनुरूप कार्य नहीं है। जहाँ तक परिवार का प्रश्न है परिवार की अति आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति भी नहीं हो पा रही है। परिवार का भरण पोषण न्यूनतम स्तर से बमुश्किल हो रहा है। मैं अपने कुषाग्र बच्चों को उच्च स्तरीय शिक्षा (पशुचिकित्सा शिक्षा) चाह कर भी दिलाने में आर्थिक कारणों से स्वयं को अक्षम पा रहा हूँ। ऐसा नहीं है कि मेरे पास योग्यता समाप्त हो गयी है, या मेरी क्रियाशीलता में शिथिलता आ गयी है अथवा मेरे मन में भारतमाता की सेवा पूरी क्षमता से करने की चाह में कोई कमी आयी हो। ऐसा भी नहीं है कि मेरे पास सम्माननीय भारत माता की सेवा करने के लिए कोई योजना नहीं है। समस्या केवल यह है कि मेरे पास संसाधनों तथा अवसर की कमी है। मैंने अपनी योग्यता एवं क्रियाशीलता का सदुपयोग करने के लिए एक एन.जी.ओ. का गठन किया। उचित संस्थाओं में शोध परियोजनाऐं भेजी। लेकिन अधिकतर संस्थाओं से मौखिक रूप से यह प्रत्युत्तर मिल रहा है कि वे एन.जी.ओ. को फण्डिंग नहीं करते हैं। कुछ निजी संस्थाओं से निवेदन किया गया तो वे फण्डिंग करने को तैयार थे लेकिन 60 प्रतिशत धन की अवैध वापसी की मांग (काले धन को सफेद करने के लिए) की गयी। यह मेरे लिए सम्भव नहीं था। बमुश्किल कठिनाई से अपने अल्प वेतन में से मासिक कटौती करते हुए एक जरनल चलाया जा रहा है (जरनल आफ रूरल एडवांसमेंट) लेकिन आर्थिक कठिनाइयों के कारण यह भी बन्द होने के कगार पर है। जहाँ तक मेरे पास योजना का प्रश्न है, मेरे पास भारत माता के विकास में सहयोग करने के लिए एक बहुत ही अद्वितीय एवं अद्भुत योजना है जिससे एक ओर तो हमारे आध्यात्मिक पशु (गो-पशु) को अनावश्यक वध से बचाया जा सकेगा तथा दूसरी ओर देश की ऊर्जा आवश्यकताओं (विद्युत) को पूरा किया जा सकेगा। यह बिजली बेहद कम लागत पर प्राप्त होगी क्योंकि परियोजना में चारा घास और तृण में उपस्थित ऊर्जा को पशुओं के माध्यम से विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है। हमारे पशुओं की कमी है और न चारा घास और तृण आदि की। संयंत्र को कहीं भी यहाँ ग्राम स्तर पर भी लगाया जा सकता है। इस योजना की क्षमता अपार है। बस यही है मेरे मन की बात है।

(घटना, पात्र एवं स्थान आदि सभी काल्पनिक हैं, यदि कोई समानता पायी जाती है तो वह मात्र एक संयोग है। कृति का उद्देश्य किसी की भावना को ठेस पहुंचाना नहीं है।)

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