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गौ–पशुओंकेलिएखनिजलवणोंकामहत्व
डा. अवधेशकिशोर
गौ-पशु शरीर में खनिज लवण मुख्यतया हड्डियों तथा दांतों की रचना के मुख्य भाग हैं। दूध में भी काफी मात्रा में ये तत्व स्रावित होते हैं। खनिज लवण शरीर के एन्जाइम और विटामिनों के निर्माण में काम आकर शरीर की कई महत्वपूर्ण क्रियाओं को निष्पादित करते हैं। इनकी कमी से शरीर में कई प्रकार की बीमारियाँ हो जाती हैं।
गौ-पशुओं के लिए कैल्शियम, फास्फोरस, पोटैशियम, सोडियम, क्लोरीन, गंधक, मैग्निशियम, मैंगनीज, लोहा, तांबा, जस्ता, कोबाल्ट, आयोडीन, तथा सेलेनियम इत्यादि शरीर के लिए आवश्यक प्रमुख खनिज लवण हैं। दूध उत्पादन की अवस्था में मादा गौ-पशुओं को कैल्शियम तथा फास्फोरस की अधिक आवश्यकता होती है। प्रसूति काल में कैल्शियम की कमी से दुग्ध ज्वर हो जाता है। बाद की अवस्थाओं में गौ-पशुओं में दूध उत्पादन घट जाता है साथ ही प्रजनन दर में भी कमी आती है। चूंकि चारे में उपस्थित खनिज लवण गौ-पशु की आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाते, इसलिए खनिज लवणों को अलग से खिलाना आवश्यक है।
शरीर में खनिज लवणों में सबसे अधिक मात्रा कैल्सियम, फास्फोरस, लौह, आयोडीन तथा सोडियम की होती है। अस्थि पंजर, अस्थि दाँत, कैल्शियम तथा फोस्फोरस से निर्मित होते हैं। लौह, रक्त का घटक है और आइडीन हार्मोन का एक हिस्सा। सोडियम शरीर के ऊतकों की प्रक्रिया का नियंत्रण करते हैं जिनपर सारे शरीर का भरण-पोषण निर्भर है।
जीवन की अनेक क्रियाओं के लिये कैल्शियम एक अनिवार्य तत्व है। अस्थि पंजर, दाँतों का निर्माण एवं भरण पोषण के लिये कैल्शियम का होना अनिवार्य है। कैल्शियम के प्रमुख कार्य हैं, शरीर के विभिन्न अंगों को क्रियाशील बनाना, माँसपेशियों का संकोचन नियमित रूप से करना, हृदय की माँसपेशियों का संकोचन कराना, हृदय को गतिशील बनाये रखना, रक्तस्त्राव को रोकने के लिये रक्त के थक्के बनाना, स्नायु संस्थान कार्य नियमित रूप से कराना इत्यादि।
कैल्शियम की कमी से अस्थि पिंजर का निर्माण ठीक से नहीं होता। वह कमजोर हो सकता है या उसमें विकृति भी हो सकती है। दाँतों का क्षयग्रस्त हो सकते हैं या उसमें दर्द हो सकता है। माँसपेशियाँ में बेकारी, जिसे टेटेनी कहते हैं, यह रोग भी लग सकता है। दुधारू गौ-पशुओं में दुग्ध ज्वर इस की कमी का आम लक्षण है। छोटे गौ-पशुओं में कैल्शियम की कमी से सूखा रोग लग जाता है। जबकि बडे़ गौ-पशुओं में आस्टियो मले शिया या आस्टियो पो रोसिस रोग लगते हैं। इस तत्व की कमी से गौ-पशुओं में प्रजनन सम्बन्धी रोग लग जाते हैं।
गौ-पशुओं के लिए आवश्यक प्रधान तत्वों में कैल्शियम के बाद फोरस्फोरस की बारी आती है। कैल्शियम की उपयोगिता बहुत हद तक फोरफोरस की उपलब्धता पर ही निर्भर करती है। इस कारण फास्फोरस को कैल्शियम से एकदम अलग नहीं रखा जा सकता है। इसकी कमी के कारण गौ-पशुओं में कैल्शियम की कमी के लक्षणों को देखा जाता ही है साथ ही पीका नामक रोग भी लग जाता है।
गौ-पशुओं के शरीर में लौह लाल रक्त कणों में वृद्धि कर रक्त की मात्रा को बढ़ता है जिससे रक्तअल्पता पनप नहीं पाती है। शरीर में लौह की कमी से शरीर रक्तअल्पता की शिकार होती है, शरीर की शक्ति क्षीण हो जाती है। शरीर सफेद दिखने लगता है, निम्न रक्तचाप की शिकायत होती है, कभी-कभी गौ-पशुओं में मूच्र्छा भी आने लगती है।
दुधारू गौ-पशुओं के लिए आइडीन भी एक अनिवार्य तत्व है। इसकी कमी का प्रभाव थाइराड ग्रन्थि पर पड़ता है। इसकी कमी से थाइराड ग्रन्थि बढ़ जाता है जिसे घेंघा कहा जाता है। यदि गर्भवती मादा गौ-पशुओं में इसका अभाव हो जाता है तो इसका प्रतिकूल प्रभाव थाइराड ग्रन्थि पर पड़ने के कारण भ्रूण विकास पर पड़ता है। बच्चा शारीरिक रूप से विकलांग या मानसिक रूप से कमजोर हो जाता है।
सोडियम क्लोराइड (साधारण नमक) भोजन में रुचि बढ़ाता है और शरीर के जल और लवण के संतुलन देता है। इसके अभाव में गौ-पशुओं में दुर्बलता और थकावट का अनुभव होता है।
गौ-पशुओं की खनिज लवणों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उन्हें खनिज मिश्रण देना चाहिए। बाजार में अच्छे ब्रांड के उपयुक्त खनिज मिश्रण या मिनिरल मिक्स्चर खरीदे जा सकते हैं। गौ-पशुओं को इसकी 30 से 60 ग्राम मात्रा प्रतिदिन देनी चाहिए। वत्स गौ-पशुओं को 10 ग्राम खनिज मिश्रण प्रतिदिन दिया जाता है। यदि खनिज मिश्रण की अनुपलब्धता हो तो विकल्प के रूप में साधारण खडि़या और डाई कैल्शियम फास्फेट जिसे डीसीपी भी कहा जाता है, दिया जा सकता है। लेकिन स्मरण रहे कि ये दोनों मात्र एक विकल्प हैं। खनिज मिश्रण देना सदैव श्रेष्ठ रहता है।
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