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बेटी बचाओ बेटी पढाओ।
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डा. अवधेश किशोर शर्मा ‘महारथी’
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‘‘आज टीवी पर बेटी बचाओ बेटी पढाओ पर एक बहुत अच्छा कार्यक्रम आया। वास्तव में बहुत ही मार्मिक था।’’ मैंने भाई साहब से कहा। वे आज सुबह सुबह ही आ गये थे। आज उनका का मूड पहले से ही बहुत खराब था। भाई साहब से तो आपका परिचय है ही। उनका नाम है डा. घसीटाराम, मेरे काल्पनिक पात्र हैं। पढे़ लिखे जागरूक इंसान हैं। मुझे से एक साल सीनियर हैं। समाज की सेवा में तल्लीन रहते हैं। मेरी बात सुनते ही उन्होंने मुझे लम्बा भाषण पिला दिया।
‘‘बेटी बचाओ बेटी पढाओ। आज कितना हल्ला हो रहा है। तमाम होर्डिंग लगाए हैं। टीवी-रेडियो पर प्रचार हो रहा है। सेमीनार व्याख्यान मालाओं का आयोजन हो रहा है। नेता और यहाँ तक कि मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री आदि भी भाषण कर रहे हैं कि बेटी बचाओ बेटी पढाओ। लेकिन परिणाम क्या निकल रहा है?’’
मैंने कहा ‘‘अरे भाई साहब आराम से बैठो।’’ श्रीमती जी सुबह की चाय ले आईं थी। चाय परोस कर बोली ‘‘भाईसाहब लीजिए] चाय पीजिये।’’ वह अखबार साथ में लाईं थी। मैंने अखबार की घड़ी खोली ही थी कि वे फिर से आग बबूला हो गये-‘‘देख पहले ही पन्ने पर पूरे पेज का विज्ञापन है-बेटी बचाओ बेटी पढाओ।’’
आज उनके भाव कुछ विचलित करने वाले थे। मैंने कहा-‘‘ठीक तो है। जागरूकता लाने के लिए यह सब जरूरी है।’’
‘‘क्या खाक जागरूकता आ रही है?’’ उनका पारा सातवें आसमान पर था-‘‘सब धंधे की जुगाड़ में लगे हैं। कमाने का मुद्दा मिल गया है। अखबार को विज्ञापन मिल रहे हैं। टीवी को विज्ञापन के साथ साथ टीआरपी मिल रही है। एनजीओ को ग्रांट मिल रही है। कमी शनखोरों को कमीशन मिल रहा है। सरकार वालों की सरकार चल रही है। पर उस बेटी को क्या मिल रहा है जिसके नाम पर यह सब ढकोसला हो रहा है? वह तो आज भी जमीन पर आने से पहले ही काटी जा रही है।’’
मैंने अनुमान लगा लिया था कि कहीं कुछ गड़बड़ हुई है। मैंने पूछा-‘‘आखिर हुआ क्या? जो आप ऐसे नाराज हैं।’’ मैंने अखबार उठाकर एक तरफ रख दिया।
वे मुझ पर सीधे सीधे वार करने पर उतारू थे-‘‘तुझे तो समाज से कोई लेना-देना है नहीं। समाज में क्या हो रहा है तुझे मालूम करने की आवश्यकता भी नहीं है।’’ मैं सकते में आ गया। ‘‘भाई साहब कुछ बताओगे भी या ऐसे ही पहेलियां बुझाते रहोगे?’’
अब उन्होंने अपनी भड़ास निकालना शुरू कर दिया-‘‘कहने को तो ये नगरी है श्री राधे जी की। नाम है वृन्दावन। यहाँ नारियों की पूजा का चलन है। राधे की सत्ता को स्वीकार किया जाता है।’’ मैंने स्वीकारोक्ति में सिर हिला कर उनका समर्थन करते हुए पूछा-‘‘सो तो है लेकिन इसका और आपकी नाराजगी का कोई मेल नहीं दिख रहा है।’’
अब वे राजपाश करने की मुद्रा में आ गये थे-‘‘सुन, इसी नगरी में मथुरा रोड पर एक सरकारी हस्पताल है लोग उसे मायावती हस्पताल कहते हैं। उसमें एक खास महिला डाक्टर जो हर महीने हजारों की तनख्वाह और लाखों की ऊपरी आमदनी करती हैं। ऊपर तक उसकी बहुत धाक बतायी जाती है। सीधे लखनऊ में पहुंच है उसकी।’’ मैंने पूछ लिया-‘‘क्या कर डाला उसने?’’
वे बताने लगे कि-‘‘वह आज कल लिंग परीक्षण करके भू्रण हत्या करने में व्यस्त है। वो भी सरकारी हस्पताल में खुले आम। बाहर के डाक्टर डर जाते हैं लेकिन धड़ल्ले से इस काम को कर रही है। ना जाने कितनी कन्याओं का अवतरण होने से पहले ही उनका अन्त कर दिया अब तक उसने।’’
उनका गला अब भर आया था-‘‘वाह रे उत्तर प्रदेश, इसके डाक्टर, निरीह भू्रणों का नाश कर रहे हैं। यहां की सरकारें हैं कि उनको भी इन सब से कोई मतलब नहीं है। निरीह जानें जाती हैं तो जाती रहें अपनी सरकार बची रहे। ऐसे मां बाप के विषय में क्या कहा जाय जो बच्चों को उनका कत्ल करने के लिए बीजारोपण करते हैं।’’
मैंने उनसे कहा-‘‘आपकी बात में दम है। चलो आप तैयार होकर नौ बजे तक आ जाइये। जिले के मुखिया से शिकायत करते हैं। उस डाक्टर को देख लेंगे कि कैसे लिंग परीक्षण कर भू्रण हत्या करती है?’’
भाई साहब ठीक नौ बजे आ गये। मैंने उनकी सहायता से एक शिकायती पत्र लिखा। ठीक ग्यारह बजे जिले के मुखिया के कार्यालय में पहुंच गये। बड़ी मशक्कत के बाद तीन बजे के बाद उनसे मुलाकात हो सकी। मैंने अपना और भाई साहब का परिचय दिया।
जिला अधिकारी ने मुझसे कहा-‘‘केवल दो वाक्यों में अपनी बात कहिये और शिकायती पत्र मुझे दे दें। मेरे पास समय की काफी कमी है। वृन्दावन में माननीय राष्ट्रपति जी का दौरा होने वाला है तैयारी करनी है।’’ मैं बड़े ही पशोपेश में पड़ गया कि इतने गम्भीर मामले को दो वाक्यों में कैसे कहूं। खैर मैंने बताया-‘‘वृन्दावन के सरकारी हस्पताल में लिंग परीक्षण के उपरान्त अवैध भू्रण हत्या हो रही है। इस कार्य में वहाँ की महिला डाक्टर शामिल है।’’
‘‘क्या कह रहे हो? पता है आप किस की बात कर रहे हैं?’’ उन्होंने सकपका कर सीधा प्रश्न कर दिया। मैंने महिला डाक्टर का नाम बता दिया।
‘‘आप के पास क्या प्रमाण है?’’ उन्होंने सीधा प्रश्न एक बार फिर दाग दिया।
मैंने सफाई दी-‘‘भू्रण परीक्षण और हत्या कराने वाले भू्रण परीक्षण करा कर चले गये। वे कोई सबूत नहीं देंगे क्योंकि वे खुद ऐसा कराना चाहते थे। भू्रण हत्या बन्द ओ.टी. में की जाती है अतः यह भी सम्भव नहीं है कि वहाँ से कोई सबूत जुटाया जा सके। आप निष्पक्ष जांच करायें सब निकल कर आ जाऐगा।’’
‘‘अच्छा। आप क्या समझते हो, मैं आप के द्वारा बताये रास्ते से अपनी नौकरी करूंगा। सबूत लेकर आइये तब आपकी शिकायत पर विचार किया जायेगा। और हां किसी का नाम बिना सबूत मत लिया करो वरना लेने के देने पड़ जाऐंगे।’’ यह कहते हुए उन्होंने हमारी शिकायत वापस कर दी और चले जाने के लिए कह दिया।
भाईसाहब बोले-‘‘लेकिन सर वो बेटी बचाओ बेटी पढाओ अभियान चल रहा है तो कुछ कीजिए ना।’’
वे बोले-‘‘ये सब आप जैसे जागरूक नागरिकों के लिए है हमें अपना काम करने दीजिए। धन्यवाद।’’
(घटना, पात्र एवं स्थान आदि सभी काल्पनिक हैं यदि कोई समानता पायी जाती है तो वह महज एक संयोग है। कथाकार का उद्देश्य किसी को ठेस पहुंचाना नहीं है।)
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